Skip to main content

सप्तपदी


सनातन धर्म मे विवाह के समय पति और पत्नी मिलकर सातवचन बोलते हैं। इसे सप्तपदी कहते हैं।
इन संस्कृत वाक्यों मे पति पत्नी से कहता है -

ओम  इषे एकपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 1।। 
    
हे देवि  ! तुम संपत्ति तथा ऐश्वर्य और दैनिक खाद्य और पेय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए पहला पग बढ़ाओ ,  सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो। सर्वव्यापक परमात्मा तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।

ओम ऊर्जे द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 2 ।।

  हे देवी ! तुम त्रिविध बल तथा पराक्रम की प्राप्ति के लिए दूसरा पग बढ़ाओ ।  सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो। सर्वव्यापक परमात्मा  तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें...
               
ओम  रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 3 ।।

-हे देवि ! धन संपत्ति की वृद्धि के लिए तुम तीसरा पग बढ़ाओ ,सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली  रहो। सर्वव्यापक परमात्मा  तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।   

ओम  मयोभवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 4।। .
हे देवि ! तुम आरोग्य शरीर और  सुखलाभवर्धक धन संपत्ति के भोग की शक्ति के लिए चौथा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो सर्वव्यापक परमात्मा  तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।        
     
ओम पशुभ्यो: पंचपदी  भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 5 ।।

हे देवि ! तुम  पशुओं ,(गाय  घोड़ा ) के पालन और रक्षा के लिए पांचवा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो सर्वव्यापक परमात्मा तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें   ।।       
    
ओम  ऋतुभ्य षट्पदी भव सा मामुनव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 6 ।।

 हे देवि !  तुम 6 ऋतुओं के अनुसार यज्ञ आदि और विभिन्न पर्व मनाने के लिए और ऋतुओं के अनुकूल खान पान के लिए छठा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो सर्वव्यापक परमात्मा  तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें   ।।   
        
ओम  सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 7 ।।

हे देवि !  जीवन का सच्चा साथी बनने के लिए तुम  सातवां पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो सर्वव्यापक परमात्मा तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।

Comments

Popular posts from this blog

              इंदौर से 100 किलोमीटर दूर माँ नर्मदा के तट पर महेश्वर कोट किला जो खरगोंन (मप्र,) में स्थित है । जिसका महारानी अहिल्याबाई होल्कर जी ने निर्माण कराया था । यह किला भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है । आइए जानते हैं,कुछ इसके बारे में....                 देवी अहिल्याबाई की राजधानी बनने के बाद महेश्वर ने विकास के कई अध्याय देखे. एक छोटे से गाँव से इंदौर स्टेट की राजधानी बनने के बाद अब महेश्वर को बड़ी तेजी से विकसित किया जा रहा था. सामाजिक, धार्मिक भौतिक तथा सांस्कृतिक विकास के साथ ही साथ देवी अहिल्या बाई ने अपनी राजधानी को औद्योगिक रूप से समृद्ध करने के उद्देश्य से अपने यहाँ वस्त्र निर्माण प्रारंभ करने की योजना बनाई. उस समय पुरे देश में वस्त्र निर्माण तथा हथकरघा में हैदराबादी बुनकरों का कोई जवाब नहीं था. अतः देवी अहिल्या बाई ने हैदराबाद के बुनकरों को अपने यहाँ महेश्वर में आकर बसने के लिए आमंत्रित किया तथा अपना बुनकरी का पुश्तैनी कार्य यहीं महेश्वर में रहकर करने के आग्रह किया. अंततः देवी अहिल्या के प्रयासों से हैदराबाद से कुछ बुनकर महेश्वर आकर बस गए तथा यहीं अपना कपडा बुनने का
एक प्रमेय (Theorem) होती है जिसका हम नवमी-दसमी से लेकर बारह्वी कक्षा तक प्रयोग करते हैं, जिसे हम पईथागोरस थेओरम कहते हैं| पईथागोरस का जन्म हुआ ईसा से आठ शताब्दी पहले हुआ था और ईसा के पंद्रहवी शताब्दी पहले के भारत के गुरुकुलों के रिकार्ड्स बताते हैं कि वो प्रमेय हमारे यहाँ था, उसको हम बोधायन प्रमेय के रूप में पढ़ते थे| बोधायन एक महिर्षि हुए उनके नाम से भारत में ये प्रमेय ईशा के जन्म के पंद्रहवी शताब्दी पहले पढाई जाती थी यानि आज से लगभग साढ़े तीन हज़ार साल पहले भारत में वो प्रमेय पढाई जाती थी, बोधायन प्रमेय के नाम से और वो प्रमेय है – किसी आयत के विकर्ण द्वारा व्युत्पन्न क्षेत्रफल उसकी लम्बाई एवं चौड़ाई द्वारा पृथक-पृथक व्युत्पन्न क्षेत्र फलों के योग के बराबर होता है। तो ये प्रमेय महिर्षि बोधायन की देन है जिसे हम आज भी पढ़ते हैं और पईथागोरस नाम से | शुल्ब सूत्र या शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शु
हिंदू धर्म और शास्त्रों में सुबह-शाम शंख बजाने को बेहद शुभ माना जाता है। क्योंकि शंख बजाने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि से नकारात्‍मक ऊर्जा आती और बुरी शक्तियां दूर रहती है साथ ही वातावरण में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया खत्म होते हैं और वातावरण शुद्ध होता है। शंख बजाने से बैक्टीरिया नष्ट होने वाली बात को वैज्ञानिकों ने भी कई शोधों में सही पाया। शंख बजाने से सिर्फ वातावरण ही शुद्ध नहीं होता है बल्कि आपको कई सारी बीमारियों को भी खत्म करने में कारगर होता है। इसलिए आज हम आपको शंख बजाने के फायदे के बारे में बता रहे हैं। जिससे आप आजमाकर अपनी कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं।  शंख बजाने के फायदे : 1 सांस संबंधी और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों में शंख बजाना बेहद फायदेमंद होता है। क्योंकि शंख बजाने से फेफड़ों की एक्सरसाइज होती है। अगर नियमित रूप से शंख बजाया जाता है तो इससे चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र से जुड़ी परेशानियों में लाभ मिलता है। 2 शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फॉस्फोरस की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ऐसे में अगर रात को शंख में पानी भरकर रखें और सुबह उसका सेवन करने स