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क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे?

क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे? हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनायें  इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते है। 1.  प्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते है। सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते है कि वानर का अर्थ होता है "बन्दर"  परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता है वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला। जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते है।  उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते है। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता। 2. सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते है उसमें उनकी पूंछ लगी हुई दिखाई देती हैं।  परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती? नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र है। 3. किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट...
 क्या इस तरह के वास्तुकला महज संयोग है? इतने संयोग कैसे हो सकते है? अगर कोई ऐसे संयोग कहे तो उससे बड़ा अज्ञानी इस धरती पर कोई नहीं है..  यह 12वीं शताब्दी में बना वीरनारायण मंदिर है..   प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को सूर्य इस मंदिर के बीचोबीच आता है.. 23 मार्च को सूर्य की स्थिति को ध्यान में रखकर इस मंदिर को बनाना अपने आप में एक हैरान करने वाली वास्तुकला है..  लेकिन हैरान नहीं होना है,गर्व करना है हमारे पूर्वजों के उस ज्ञान पर जिसे मुगलों के द्वारा,आक्रमणकारियों के द्वारा नष्ट करने की लगातार कोशिश की गई लेकिन नष्ट नहीं कर पाए क्योंकि जो सत्य है वहीं सनातन है.. (वीरनारायण मंदिर, चिकमंगलूर, कर्नाटक)

जनेऊ

 जनेऊ धारण करना कभी सनातन में अनिवार्य कर्म माना जाता था ,यह यहां तक स्वीकार्य था कि बुद्ध की जो असली मूर्ति मिलती है उनमें भी जनेऊ स्प्ष्ट दिखाई देती है। जनेऊ  को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं, इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं।  'उपनयन' का अर्थ है, 'पास या सन्निकट ले जाना।' किसके पास? ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना।  हिन्दू समाज के हर वर्ग को जनेऊ धारण करना चाहिए। लोग जनेऊ धारण इसलिए नहीं करते क्योंकि फिर उन्हें उसके नियमों का पालनकर सादगीपूर्ण जीवन यापन करना होता है।  जनेऊ के नियमों का पालन करके आप निरोगी जीवन जी सकते हैं।  आध्यात्म के अतिरिक्त इसका वैज्ञानिक महत्व भी है कुछ मुख्य एव महत्वपूर्ण तथ्य निम्नवत हैं।  जीवाणुओं-कीटाणुओं से बचाव : जो लोग जनेऊ पहनते हैं और इससे जुड़े नियमों का पालन करते हैं, वे मल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं।  इसकी आदत पड़ जाने के बाद लोग बड़ी आसानी से गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं। गुर्दे की सुरक्षा : यह नियम ह...
              इंदौर से 100 किलोमीटर दूर माँ नर्मदा के तट पर महेश्वर कोट किला जो खरगोंन (मप्र,) में स्थित है । जिसका महारानी अहिल्याबाई होल्कर जी ने निर्माण कराया था । यह किला भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है । आइए जानते हैं,कुछ इसके बारे में....                 देवी अहिल्याबाई की राजधानी बनने के बाद महेश्वर ने विकास के कई अध्याय देखे. एक छोटे से गाँव से इंदौर स्टेट की राजधानी बनने के बाद अब महेश्वर को बड़ी तेजी से विकसित किया जा रहा था. सामाजिक, धार्मिक भौतिक तथा सांस्कृतिक विकास के साथ ही साथ देवी अहिल्या बाई ने अपनी राजधानी को औद्योगिक रूप से समृद्ध करने के उद्देश्य से अपने यहाँ वस्त्र निर्माण प्रारंभ करने की योजना बनाई. उस समय पुरे देश में वस्त्र निर्माण तथा हथकरघा में हैदराबादी बुनकरों का कोई जवाब नहीं था. अतः देवी अहिल्या बाई ने हैदराबाद के बुनकरों को अपने यहाँ महेश्वर में आकर बसने के लिए आमंत्रित किया तथा अपना बुनकरी का पुश्तैनी कार्य यहीं महेश्वर में रहकर करने के आग्रह किया. अंततः देवी अहिल्या के प...
एक प्रमेय (Theorem) होती है जिसका हम नवमी-दसमी से लेकर बारह्वी कक्षा तक प्रयोग करते हैं, जिसे हम पईथागोरस थेओरम कहते हैं| पईथागोरस का जन्म हुआ ईसा से आठ शताब्दी पहले हुआ था और ईसा के पंद्रहवी शताब्दी पहले के भारत के गुरुकुलों के रिकार्ड्स बताते हैं कि वो प्रमेय हमारे यहाँ था, उसको हम बोधायन प्रमेय के रूप में पढ़ते थे| बोधायन एक महिर्षि हुए उनके नाम से भारत में ये प्रमेय ईशा के जन्म के पंद्रहवी शताब्दी पहले पढाई जाती थी यानि आज से लगभग साढ़े तीन हज़ार साल पहले भारत में वो प्रमेय पढाई जाती थी, बोधायन प्रमेय के नाम से और वो प्रमेय है – किसी आयत के विकर्ण द्वारा व्युत्पन्न क्षेत्रफल उसकी लम्बाई एवं चौड़ाई द्वारा पृथक-पृथक व्युत्पन्न क्षेत्र फलों के योग के बराबर होता है। तो ये प्रमेय महिर्षि बोधायन की देन है जिसे हम आज भी पढ़ते हैं और पईथागोरस नाम से | शुल्ब सूत्र या शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शु...
हिंदू धर्म और शास्त्रों में सुबह-शाम शंख बजाने को बेहद शुभ माना जाता है। क्योंकि शंख बजाने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि से नकारात्‍मक ऊर्जा आती और बुरी शक्तियां दूर रहती है साथ ही वातावरण में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया खत्म होते हैं और वातावरण शुद्ध होता है। शंख बजाने से बैक्टीरिया नष्ट होने वाली बात को वैज्ञानिकों ने भी कई शोधों में सही पाया। शंख बजाने से सिर्फ वातावरण ही शुद्ध नहीं होता है बल्कि आपको कई सारी बीमारियों को भी खत्म करने में कारगर होता है। इसलिए आज हम आपको शंख बजाने के फायदे के बारे में बता रहे हैं। जिससे आप आजमाकर अपनी कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं।  शंख बजाने के फायदे : 1 सांस संबंधी और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों में शंख बजाना बेहद फायदेमंद होता है। क्योंकि शंख बजाने से फेफड़ों की एक्सरसाइज होती है। अगर नियमित रूप से शंख बजाया जाता है तो इससे चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र से जुड़ी परेशानियों में लाभ मिलता है। 2 शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फॉस्फोरस की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ऐसे में अगर रात को शंख में पानी भरकर रखें और सुबह उसका सेवन कर...

मंदिर में घंटी बजाने के पीछे वैज्ञानिक कारण:

         हिन्दू मंदिर में घंटी लगाने की परंपरा की शुरुआत प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने शुरू की थी। इस परंपरा को ही बाद में जैन औरबौद्ध धर्म और फिर ईसाई धर्म ने अपनाया। बौद्ध जहां स्तूपों में घंटी, घंटा, समयचक्र आदि लगाते हैं तो वहीं चर्च में भी घंटी और घंटा लगाया जाता है।         स्कंद पुराण के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से मानव के सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, घंटी या घडिय़ाल की ध्वनि से वही नाद निकलता है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। धर्म शास्त्रियों के अनुसार जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद प्रकट होगा। मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे वैज्ञानिक कारण:            मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है...