क्या इस तरह के वास्तुकला महज संयोग है? इतने संयोग कैसे हो सकते है? अगर कोई ऐसे संयोग कहे तो उससे बड़ा अज्ञानी इस धरती पर कोई नहीं है.. यह 12वीं शताब्दी में बना वीरनारायण मंदिर है.. प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को सूर्य इस मंदिर के बीचोबीच आता है.. 23 मार्च को सूर्य की स्थिति को ध्यान में रखकर इस मंदिर को बनाना अपने आप में एक हैरान करने वाली वास्तुकला है.. लेकिन हैरान नहीं होना है,गर्व करना है हमारे पूर्वजों के उस ज्ञान पर जिसे मुगलों के द्वारा,आक्रमणकारियों के द्वारा नष्ट करने की लगातार कोशिश की गई लेकिन नष्ट नहीं कर पाए क्योंकि जो सत्य है वहीं सनातन है.. (वीरनारायण मंदिर, चिकमंगलूर, कर्नाटक)