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Showing posts from May, 2021
 क्या इस तरह के वास्तुकला महज संयोग है? इतने संयोग कैसे हो सकते है? अगर कोई ऐसे संयोग कहे तो उससे बड़ा अज्ञानी इस धरती पर कोई नहीं है..  यह 12वीं शताब्दी में बना वीरनारायण मंदिर है..   प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को सूर्य इस मंदिर के बीचोबीच आता है.. 23 मार्च को सूर्य की स्थिति को ध्यान में रखकर इस मंदिर को बनाना अपने आप में एक हैरान करने वाली वास्तुकला है..  लेकिन हैरान नहीं होना है,गर्व करना है हमारे पूर्वजों के उस ज्ञान पर जिसे मुगलों के द्वारा,आक्रमणकारियों के द्वारा नष्ट करने की लगातार कोशिश की गई लेकिन नष्ट नहीं कर पाए क्योंकि जो सत्य है वहीं सनातन है.. (वीरनारायण मंदिर, चिकमंगलूर, कर्नाटक)

जनेऊ

 जनेऊ धारण करना कभी सनातन में अनिवार्य कर्म माना जाता था ,यह यहां तक स्वीकार्य था कि बुद्ध की जो असली मूर्ति मिलती है उनमें भी जनेऊ स्प्ष्ट दिखाई देती है। जनेऊ  को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं, इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं।  'उपनयन' का अर्थ है, 'पास या सन्निकट ले जाना।' किसके पास? ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना।  हिन्दू समाज के हर वर्ग को जनेऊ धारण करना चाहिए। लोग जनेऊ धारण इसलिए नहीं करते क्योंकि फिर उन्हें उसके नियमों का पालनकर सादगीपूर्ण जीवन यापन करना होता है।  जनेऊ के नियमों का पालन करके आप निरोगी जीवन जी सकते हैं।  आध्यात्म के अतिरिक्त इसका वैज्ञानिक महत्व भी है कुछ मुख्य एव महत्वपूर्ण तथ्य निम्नवत हैं।  जीवाणुओं-कीटाणुओं से बचाव : जो लोग जनेऊ पहनते हैं और इससे जुड़े नियमों का पालन करते हैं, वे मल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं।  इसकी आदत पड़ जाने के बाद लोग बड़ी आसानी से गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं। गुर्दे की सुरक्षा : यह नियम है कि बैठकर ही जलपान करन