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Showing posts from May, 2020
एक प्रमेय (Theorem) होती है जिसका हम नवमी-दसमी से लेकर बारह्वी कक्षा तक प्रयोग करते हैं, जिसे हम पईथागोरस थेओरम कहते हैं| पईथागोरस का जन्म हुआ ईसा से आठ शताब्दी पहले हुआ था और ईसा के पंद्रहवी शताब्दी पहले के भारत के गुरुकुलों के रिकार्ड्स बताते हैं कि वो प्रमेय हमारे यहाँ था, उसको हम बोधायन प्रमेय के रूप में पढ़ते थे| बोधायन एक महिर्षि हुए उनके नाम से भारत में ये प्रमेय ईशा के जन्म के पंद्रहवी शताब्दी पहले पढाई जाती थी यानि आज से लगभग साढ़े तीन हज़ार साल पहले भारत में वो प्रमेय पढाई जाती थी, बोधायन प्रमेय के नाम से और वो प्रमेय है – किसी आयत के विकर्ण द्वारा व्युत्पन्न क्षेत्रफल उसकी लम्बाई एवं चौड़ाई द्वारा पृथक-पृथक व्युत्पन्न क्षेत्र फलों के योग के बराबर होता है। तो ये प्रमेय महिर्षि बोधायन की देन है जिसे हम आज भी पढ़ते हैं और पईथागोरस नाम से | शुल्ब सूत्र या शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शु
हिंदू धर्म और शास्त्रों में सुबह-शाम शंख बजाने को बेहद शुभ माना जाता है। क्योंकि शंख बजाने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि से नकारात्‍मक ऊर्जा आती और बुरी शक्तियां दूर रहती है साथ ही वातावरण में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया खत्म होते हैं और वातावरण शुद्ध होता है। शंख बजाने से बैक्टीरिया नष्ट होने वाली बात को वैज्ञानिकों ने भी कई शोधों में सही पाया। शंख बजाने से सिर्फ वातावरण ही शुद्ध नहीं होता है बल्कि आपको कई सारी बीमारियों को भी खत्म करने में कारगर होता है। इसलिए आज हम आपको शंख बजाने के फायदे के बारे में बता रहे हैं। जिससे आप आजमाकर अपनी कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं।  शंख बजाने के फायदे : 1 सांस संबंधी और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों में शंख बजाना बेहद फायदेमंद होता है। क्योंकि शंख बजाने से फेफड़ों की एक्सरसाइज होती है। अगर नियमित रूप से शंख बजाया जाता है तो इससे चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र से जुड़ी परेशानियों में लाभ मिलता है। 2 शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फॉस्फोरस की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ऐसे में अगर रात को शंख में पानी भरकर रखें और सुबह उसका सेवन करने स

मंदिर में घंटी बजाने के पीछे वैज्ञानिक कारण:

         हिन्दू मंदिर में घंटी लगाने की परंपरा की शुरुआत प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने शुरू की थी। इस परंपरा को ही बाद में जैन औरबौद्ध धर्म और फिर ईसाई धर्म ने अपनाया। बौद्ध जहां स्तूपों में घंटी, घंटा, समयचक्र आदि लगाते हैं तो वहीं चर्च में भी घंटी और घंटा लगाया जाता है।         स्कंद पुराण के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से मानव के सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, घंटी या घडिय़ाल की ध्वनि से वही नाद निकलता है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। धर्म शास्त्रियों के अनुसार जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद प्रकट होगा। मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे वैज्ञानिक कारण:            मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु औ